जिस उम्र में हम आलस किए हुए .. हार माने हुए बैठे हैं । उसी उम्र में किसी ने अपने विचारों से भारत के सामने पूरी दुनिया को नतमस्तक कर दिया था । कोई पर्वत की ऊंची चोटी छू रहा है। कोई आसमान नाप रहा है । कोई ऊंचे पदों को सुशोभित कर रहा है । ये सब हम और आप जैसे ही हैं .. बस इस उम्र का अवसर नहीं छोड़ा इन्होंने और खुद को पूरी तरह अपने सपने(Dream) को साकार करने के लिए झोंक दिया। अनगिनत उदाहरण हैं ऐसे । इस उम्र को कभी बेकार मत जाने दीजिए। ये ऊर्जा आपको दोबारा कभी नहीं मिलेगी । यह कविता आपकी इसी ऊर्जा से आपका परिचय कराने का जामवंत प्रयास है।

सागर दो टुकड़े करने की

सीपी सेतु बनाने की

उम्र यही खो जाने की।। 2

हारे टूटे मन से भी

रण में धूम मचाने की

योद्धाओं से सजे हुए

चक्रव्यूह में जाने की

उम्र यही खो जाने की।। 2

जग के हित में केशव सा

शान्तिदूत बन जाने की 

भरी सभा में दुर्योधन को

डटकर आँख दिखाने की

उम्र यही खो जाने की।।2

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सूरज यहाँ वहां करने की

रातों नींद उड़ाने की

आग उगलती रेतों में

पानी की धार जमाने की

उम्र यही खो जाने की।

पंख बनाकर हाथों को

नौका पार लगाने की

नहीं रहे पकवान अगर तो 

सूखी रोटी खाने की

उम्र यही खो जाने की।।2

पथरीले काँटों के पथ से

लक्ष्य ढूंढ़कर लाने की

जैसे भी हो अपनी किस्मत 

अपने हाथ बनाने की 

उम्र यही खो जाने की।।2 

– Sandeep Dwivedi

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